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7 May 2020 · 1 min read

भंवरे की फितरत

अपने इर्द गिर्द भँवरे को
मंडराता देखकर
उसकी फितरत से अनजान
वह सद्ध विकसित कली-
भर गई गर्व से।
उसे लगा उस जैसा
रंग और गंध नही है–
किसी और के पास।
भँवरे को रोके रखने की
बांधे रखने की क्षमता-
केवल उसी में है।
वह उपवन की अन्य कलियों को,
पुष्पों को देखने लगी हिकारत से।
कुछ समय बाद वह कली
बन गई पूर्ण विकसित पुष्प।
उसका चुक गया था रस,
मंद पड़ गई थी गंध–
और क्षीण हो चुकी थी सुषमा।
भँवरे को नहीं रह गया था
उसमें कोई आकर्षण।
स्वभाव वश, वह मंडराने लगा
अन्य विकसित कली पर–
रस की तलाश में।
देख कर भँवरे की फितरत,
दुख और शर्म से बिखर गई वह।
उसका दर्प चूर चूर हो चुका था।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Language: Hindi
5 Likes · 411 Views
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