भँवर
भँवर
लगता है किसी भँवर में हूँ
अनचाहे शहर में हूँ
अनजाने लोगों की नज़र में हूँ
डर लग रहा है
कहा जाऊँ !
न माँ का आँचल है
न बाबा का सहारा है
लड़खड़ाते कदमों को कौन दे सहारा
आँखों में आँसू,कपकपाती जुबाँ
जीवन को अपने
ख़त्म करने का विचार
कोई तो राह दिखा दे
जिंदगी से मुझे मिलवा दे
मंज़िल तक मेरी पहुँचा दे
इस भँवर से पार लगा दे….
लेखिका मीनू यादव