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3 Jan 2020 · 1 min read

बड़े ही शौक से वो आइना दिखाते हैं

बड़े ही शौक से वो आइना दिखाते हैं
मगर वो देखना खुद उसमें भूल जाते हैं

वो पहले करते हैं अहसान, फिर गिनाते हैं
इसी तरह से ही वो दोस्ती निभाते हैं

है हर किसी को शिकायत बड़ी मुकद्दर से
मगर जो देते यहाँ हम वही तो पाते हैं

मियाद ज़िन्दगी की कम है जानकर भी हम
उलझ के व्यर्थ की बातों में ये गँवाते हैं

न हीन खुद को समझ कर कभी भी बुझ जाना
सितारे चाँदनी में भी तो जगमगाते हैं

ये जायदाद का बँटना भी है बुरी आफत
इसी में दाँव पे लग जाते रिश्ते नाते हैं

निभाते साथ थे पहले हमारे ये आँसू
ये बह के आज मगर राज खोल जाते हैं

ग़ज़ल ये ‘अर्चना’ की पढ़ के तुम चले आना
उदास रातें ये दिन अब तनिक न भाते हैं

28-12-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद

4 Likes · 1 Comment · 244 Views
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