ब्रेकप नही षडयंत्र…
ब्रेकप नही षड्यंत्र बोलो, झूठ नही अब सच बोलो।
दब गए जो राज, राज बनकर तुम ही उनको खोलो।।
समय के शिलालेख पर तुमको कायर बोला जाएगा।
जब भावनाओं के तराजू में भावो को तौला जाएगा।।
जब हवाएँ किस्सा सुनाएंगी तुम्हे अनकहे प्यार का।
तब क्या मोल रह जाएगा तुम्हारी देह के श्रंगार का?
खता मेरी क्या थी? तुम ही अपने होठो को खोलो।
ब्रेकप नही षडयंत्र बोलो, झूठ नही अब सच बोलो।।(1)
मैंने तुमको देवी माना मन मंदिर में तुम्हें बसाया था।
चाहत से भी आगे बढ़कर मैंने तुझको चाहा था।।
मन के सुंदर सपनो में तुम आग लगा कर चली गयी।
जैसे प्रेम की चौसर पर फिर एक कहानी छली गयी।।
क्या सही किया था तुमने खुद ही अपने दिल को टटोलो।
ब्रेकप नही षडयंत्र बोलो, झूठ नही अब सच बोलो।।