ब्राह्मणवादी शगल के OBC – by Musafir Baitha
मेरे रहवास के इलाक़े में एक मोची की कठघरे में दुकान है। कठघरा जर्जर है, किसी ने अपनी दुकान हटाई तो उसे गिफ्ट कर दिया। उसकी मरम्मत कर-करवाकर वह उसमें बैठता है, जूते-चप्पल मरम्मत करता है।
कठघरा गली/सड़क के किनारे है। कठघरे के पीछे खाली ज़मीन है। ज़मीन पर अभी सब्जी वगैरह उगाई जा रही है। कठघरा उस जमीन में नहीं है, उसके आगे की सड़क से लगी सरकारी जमीन पर है। कठघरे से ज़मीन को कोई बाधा नहीं है।
मग़र, ज़मीन मालिक उससे किराया की तर्ज़ पर ‘रंगदारी टैक्स’ वसूलता है। कैश में तो नहीं, काइंड में। वह अपने घर के सारे लोगों के जूते चप्पल की मरम्मत एवं पॉलिश मुफ्त में मोची से करवाता है।
घटना का एक और, पहलू है, कोढ़ में खाज़ समझिए।
रंगदारी तो बेचारे दीन-हीन मोची को भरना ही पड़ता है, वह ओबीसी ज़मीन मालिक उसका असली नाम लेकर नहीं बल्कि उसे ‘जगजीवन राम’ कहकर पुकारता है।
दलितों का कुछ ऐसे ही सम्मान वर्णाश्रमी गाँधी ने ‘हरिजन’ कहकर किया था!
आपने देखा न इस ओबीसी की वर्णवादी ऐंठ एवं दलितों के प्रति सवर्णों सी घृणा पालने की मानसिकता।
बिहार में इन साहब की जाति सबसे दबंग एवं ऊँची ओबीसी में गिनी जाती है।
जगजीवन राम के प्रति भी इनकी नकारात्मकता जाहिर है।
सवर्ण-मानस पिछड़ों में दलितों के विरुद्ध भारी ग्रंथि पलती है।