**” ब्रम्हाण्ड लोक की सैर “*
।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।
*** ब्रम्हाण्ड लोक की सैर *** ???
ब्रम्हाण्ड में स्वर्गलोक ,ब्रम्हलोक ,भूलोक ,बैकुंठ लोक ,परमधाम लोक ,पाताल लोक, शिवपुरी लोक ,अन्य लोक मौजूद रहते हैं लेकिन जब हम मन में साक्षी भाव लिए सात्विक रूप धारण करते हैं तो शुद्ध आत्मा से ब्रह्याण्ड के सारे लोकों में प्रवेश करते हुए स्वर्गारोहण की यात्रा संभव हो सकती है।
पृथ्वी पर रहने वाले हरेक व्यक्ति ब्रह्याण्ड की यात्रा करने को इच्छुक रहता है यह परम सौभाग्य की बात है एक दूसरे को प्रत्यक्ष रूप से संदेश पहुंचाने में सहायक होती है और वहाँ से नई चेतना शक्ति जागृत कर आत्मिक शांति महसूस कर आश्चर्य जनक अनुभवों को उजागर करने से स्तब्ध रह जाते हैं …..! ! !
हमें कभी यह पता चले कि आसपास मौजूद रहने वाली शक्तियाँ अच्छी व बुरी आत्मायें है
अच्छी आत्माओं का संदेश हमें अच्छे कर्मों को करने के लिए प्रेरित करती है और बुरी आत्माओं की छाँव से बुराईयां पनपने लगती है इन वातावरणों से शरीर के अंदर होने वाले हाव भाव उसी तरह से प्रेरित होने लगते हैं।
अगर किसी अच्छी आत्मा फरिश्ते के रूप धारण कर आत्मसात कर ले तो जीवन में पुनः अच्छे कर्मों की प्रधानता में प्रशस्त हो जाती है।
कभी कभी खास परिस्थितियों में चंद घंटों के लिए ही सही …फरिश्तों से मुलाकात हो तो अदभुत चमत्कार से कम नही होता है।
ऐसा ही वाकया पूर्वी भारत में रहने वाले रघुबीर जी के साथ घटित हुआ है अचानक ही उनकी तबीयत खराब हो गई उस दिन जन्माअष्टमी का पर्व था तबीयत बिगड़ने से हॉस्पिटल में ईलाज के लिए ले जाया गया उसी दौरान वे किसी कारणवश कोमा की स्थिति में चले गए सभी घर के सदस्य घबराकर सारे लोगों को सूचना पहुंचा दी गई सभी मिलकर देखकर वापस लौट गए।
रघुबीर चाचा जी अचेतन अवस्था में ही मन ही मन में रामायण की चौपाइयों को दोहराते हुए भागवत पुराण की कथाओं को जहन में लाते हुए शून्य विहीन लेटे ही रहे ।
कर्मबंधन से मुक्तिमार्ग की ओर यात्रा पर चेष्टा करने लगे थे उसी समय ब्रम्हाण्ड लोक से एक विमान आया जिस पर सवार होकर अंनत कोटि ब्रह्याण्ड की सैर को चल पड़े ।
चलते हुए मार्ग में उन्हें ऋषि की कन्यायें ब्रम्ह पुत्रियाँ – सृष्टि, दृष्टि , भृष्टि और इति ,मिति दो कन्याएँ सहयोगी पथ प्रदर्शक बनकर सामने आई और कहने लगी कि आपको कहाँ जाना है उन्होंने कहा – गौतम ऋषि का आश्रम कहाँ पर है मैं देखना चाहता हूँ …… ! ! !
इस पर इति ने बतलाया कि हम आपको वहाँ तक नहीं ले जा सकते हैं लेकिन दूर से ही आपको वह स्थान दिखला सकते हैं जहाँ पर गौतम ऋषि निवास करते हैं ।
विमान को बृहस्पति ग्रह के पास ले जाकर पहाड़ों की कन्दराओं में इशारा करते हुए बतलाई कि पृथ्वी के ऋषि मुनियों की आत्मा प्राण त्यागने के उपरान्त इन्हीं कंदराओं में निवास कर रही है।
आगे बढ़ने पर ब्रह्याण्ड लोक की सैर चल ही रही थी तभी कुछ कानों में बड़ी बेटी की आवाज सुनाई दी …! ! !
पापा कैसे हो ….इस आवाज से रघुबीर चाचा जी की चेतना पुनः जागृत अवस्था में वापस लौट आई ।
रघुबीर चाचा जी ने अपनी बेटी से कहा – तुमने मेरी ब्रह्याण्ड की सैर को आवाज लगाकर चौपट कर दिया ।कुछ चंद घंटों की स्वप्न लोक में अंनत कोटि ब्रह्याण्ड की सैर करने से पुनः नई चेतना शरीर में जागृत हो आनंद व उत्साह से पुनः प्रवेश कर गई थी ।
ऐसा भी कहा गया है कि – कृष्ण जन्माअष्टमी तिथि के दिन मौत निश्चित तौर पर नही होती है कृष्ण जी के जन्म के समय सभी पहरेदार बेहोशी की अवस्था चले गये थे क्योंकि कंस का मारनहार पैदा हो गया था और उस दिन किसी की मौत निश्चित तौर पर नही होती है।
*दरअसल कृष्ण जी का यही वरदान साबित सिद्ध हुआ है *
स्वरचित मौलिक रचना ??
।।राधैय राधैय जय श्री कृष्णा ।।
*** शशिकला व्यास ***
# भोपाल मध्यप्रदेश #