ब्रज भाषा
हाँ मैं ही ब्रज भाषा हूँ
कृष्ण की प्यारी हूँ मैं
ब्रजभूमि की सुकमारी हूँ मैं
काहे शर्माते हो
ब्रज बोली बोलन में
हमे तो नाज है
अपने मोहन पे
बोलत थे तुतला कर जब
मैया मैं नाय माखन खायो
गोपी से ले के ग्वाल तक
मोहित है कर हो जाते मदहोश
ऐसी मीठी बोली जो
बोली ब्रज में ही जावे
तीन लोकन में सब को
मन सूनवे को ललचावे
ब्रज रज की महिमा तो
ब्रह्म से भी वर्णनं ना करो जावे।
जो रस या बोली में है
वो कहूँ और नजर ना आवे।
धन्य धन्य ये ब्रज भूमि
जामे सभी देवता आयके विराजे
धन्य धन्य है संध्या जो
ब्रज भूमि में जन्म लियो
लेखन में थोड़ो हाथ आजमावे।।
मेरी बोली ही ब्रज भाषा कहलावे।।
संध्या चतुर्वेदी
मथुरा उप