ब्याहता
अगर इंसानी हृदय आशा की डोर से बंधे न होते तो मानव मौत से कभी न डरते। जब-जब वह डोर इंसानी हृदय से कटी है, तब-तब इंसानों ने मौत को गले लगाया है। अंकिता को एकबारगी रस्सी टूटती नजर आई, मगर टूट न पाई। वह सोचती रही कि इंसान इस हद तक गिर जाता है? फिर उसने मौन धारण कर ली…। उसे देखकर कोई अनुमान न लगा सकता था कि वह दुःख में है।
अंकिता की सुन्दरता, सादगी और संजीदगी अखिल को लुभाती रही। उनका जी ललचाता रहा। एक दिन अखिल ने पूछा- अंकिता, आखिर कब तक मौन साधना करोगी? क्या इस संसार में तुम्हारा ऐसे ही गुजारा हो जाएगा?
अंकिता ने बड़ी संजीदगी से कहा- मैं तो एक औरत हूँ, और वह भी ब्याहता यानी स्वयं में ही एक सम्पूर्ण संसार। कई रिश्ते जुड़े हैं मुझसे। आखिर मैं तुम्हारी बीवी होने के साथ ही तुम्हारे माता-पिता की बहू हूँ और तुम्हारी बहन की भाभी। आने वाले वक्त में तुम्हारे बच्चों की माँ भी बनूंगी। अगर तुमने वह सुख नहीं भी दिया तो मैं कोई बच्चा गोद लेकर मातृत्व सुख प्राप्त कर लूंगी; मगर अखिल तुम्हारे पास कुछ नहीं है। पत्नी को तो खो ही चुके हो। एक दिन प्रेमिका रीता को भी खो दोगे। उसे शारीरिक सुख तो दे सकते हो, पर अधिकार नहीं। वह समाज में तुम्हारा हाथ नहीं थाम सकती।
अंकिता कहती चली गई- पता नहीं बुढापा क्या रंग दिखाएगा? उस वक्त सिर्फ जीवन साथी ही साथ निभाएगा। एक पत्नी ही उस वक्त साथ देती है और तुम हो कि उसी पत्नी की नजरों में अपना सम्मान खो रहे हो। क्या मैं तुम्हारे जैसा करती तो तुम मुझे माफ कर देते? अब भी वक्त है, सिर्फ दो कदम का फासला है। अगर ब्याहता बीवी न होती तो शायद मौका न देती। यह कहते-कहते रो पड़ी थी अंकिता।
अखिल, अंकिता को एकटक देखता रहा। अखिल के रंग बदल चुके थे । अंकिता के एक-एक शब्द ने उसके बीमार हृदय में संजीवनी घोल दी थी।
(चुटकी भर सिन्दूर : कहानी-संग्रह में संकलित ‘ब्याहता’ कहानी का कुछ अंश है। इस कहानी के साथ पूरी 21कहानियाँ पढ़ने के लिए पुस्तक अवश्य पढ़ें। पुस्तक अमेजन, फ्लिपकार्ट इत्यादि से ऑनलाइन ऑर्डर करके मंगा सकते हैं)
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत भूषण सम्मान प्राप्त,
श्रेष्ठ लेखक के रूप में
विश्व रिकॉर्ड में दर्ज लेखक।