(ब्यंग्य) हमसे दोस्ती कर लिजिए
पाक की सौगात है, आतंकवाद।
लोग कर रहे हैं,परिवार का श्राद।
हम हाथ जोड़े खड़े हैं,
चरणों में पड़े हैं,
हमसे दोस्ती कर लिजिए।
हमसे दोस्ती . . . . . .
वह गुर्राता है, आंखें दिखाता है।
कश्मीर हमारा है, हमीं को सिखाता है।
भुन के रख दुंगा,
एक एक को चुन के रख दुंगा।
तभी भीड़ भरी सड़कों में, बम फुटते हैं।
कुछ घायल, कुछ अपाहिज, कुछ मरते हैं।
हाथ में पट्टी बंधी है,
पैर में बैसाखी लगी है।
लहूलूहान पड़े हैं, लंगड़ाते हुए खड़े हैं।
सर बचीं है, चाहे तो फोड़ दीजिए।
हमसे दोस्ती . . . . . .
बम गिरा दुंगा,तोप चला दुंगा।
आतंकवाद के सहारे,
संसद को शमशान बना दुंगा।
जहां पनाहगाह, तुम ही मेरे शहंशाह।
अमरीका भी है दादा यहां।
मुझे दबा रहा है,
दांतों तले चबा रहा है।
मुझे बचा लिजिए,
चरणों में जगह दीजिए।
कमर बचीं है चाहे तो तोड़ दीजिए।
हमसे दोस्ती . . . . . .