बो रही हूं खाब
बो रही हूं मैं कुछ ख्वाब अधूरे।
उग जायेगें जरूर जब होंगे पूरे ।
रोज़ मेहनत का पानी देना होगा ।
जिंदगी का पल पल देना होगा।
नये ख्वाब देखेंगी आंखें मेरी।
कुछ होंगे रोशन,कुछ सुनहरी।
घना पेड़ ख्वाबों का जब होगा।
मन तन्हा फिर कैसे ,कब होगा।
सोने का कभी नाम नहीं लेना है।
ख्वाबों को पूरा वक्त सही देना है।
सुरिंदर कौर