बोझ हसरतों का – मुक्तक
क़ता ( मुक्तक ) :-
हसरतों का बोझ लिए फिरती है ।
नदी जैसे सागर में कोई गिरती है ।।
ये ज़िंदगी भी इक तमाशा है साहिब ।
जीने के वास्ते रोज़ रोज़ मरती है ।।
© डॉ वासिफ काज़ी इंदौर
© काज़ी की कलम
क़ता ( मुक्तक ) :-
हसरतों का बोझ लिए फिरती है ।
नदी जैसे सागर में कोई गिरती है ।।
ये ज़िंदगी भी इक तमाशा है साहिब ।
जीने के वास्ते रोज़ रोज़ मरती है ।।
© डॉ वासिफ काज़ी इंदौर
© काज़ी की कलम