बैठ हवा की झूलों पर
काँटों से
उलझा रहता हूँ ,
देख तितलियाँ
फूलों पर।
खुशबू से
लिपटा रहता हूँ ,
बैठ हवा की झूलों पर..।
जब जब
प्रेम की पाती पढ़ते ,
पेड़ किनारे
मन के बैठ ।
उड़ा ले जाता
मलयानिल क्यों ,
ताक में रहता
तन में बैठ ॥
आगे फिर
अनुताप करूँ मैं ,
निज अनुबंध के भूलों पर..।
पता मुझे है
सच का फिर भी ,
रंग खींचते हैं
मुझको ।
मन को
अपने हाथ में लेकर ,
अंग खींचते हैं मुझको ॥
महज वासना
की यह क्रीड़ा,
करता हूँ मैं शूलों पर..।