बैठों पलको की छांव मे
***बैठो पलको की छांव में***
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आओ तुम पलको की छांव में,
बैठों तुम सपनो की नाव में।
छन छन करती आंगन में चलो,
पहनों तो तुम झांझर पांव में।
छूट पांएगे गिरफ्त से नही,
हम फंसे हैं तेरे दांव में।
बहती रहती धारा प् यार की,
बुझ जाएंगे दिल ठहराव में।
मनसीरत मन भारीपन भरा,
निकले कब हैं प्यारे भाव मे।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)