बैठे हैं वो उम्मीद जियादा किए हुए
निकला हूँ आज घर से इरादा किए हुए
अपने ही आप से कोई वादा किए हुए
हमको न दे सके जो कभी प्यार के दो पल
बैठे हैं वो उम्मीद जियादा किए हुए
जीने की चाह है अभी बैठे हैं इसलिए
साँसों का जिन्दगी से तकादा किए हुए
शह मात का है खेल छिड़ी जंग देखिए
राजा है बढ़ा आगे पियादा किए हुए
जिनको बड़ा घमंड था वो भी हैं जा रहे
सर पाँव तक सफेद लबादा किए हुए
सोचा न भूल पायेंगे ‘संजय’को वो मगर
बैठे हैं वो हर पृष्ठ को सादा किए हुए