बैठे-बैठे यूहीं ख्याल आ गया,
बैठे-बैठे यूहीं ख्याल आ गया,
बेचैन से मन मे, एक सवाल आ गया,
क्यूँ? ज़िंदगी के इस पड़ाव में, नया झुकाव आ गया,
जब सोना हि नही हुआ, फ़िर कैसे? वो ख़्वाब आ गया,
चाँद को तांकते ही मेरे पास, वो जवाब आ गया,
की ठहरा कभी वो चाँद भी नहीं, चाहे झोंका हवा का या तूफान आ गया, चाहे झोंका हवा का या तूफान आ गया,
हर रोज़ चमकता हैं वो आसमां में, वो उजाला उसका लाजवाब छा गया,
नज़रों की हेरा-फेरी थी, की किसी ने देखा वो चमकता चाँद, तो किसी को नज़र उसका दाग आ गया,…की किसी को नज़र उसका दाग आ गया,
अहमियत दे खुद के उजाले को ,अंधेरे को नहीं …अहमियत दे खुद के उजाले को अंधेरे को नहीं, देखा जब चाँद को तो जवाब आ गया,
हो रही है आँखें बन्द, की पलकों पर सजा फिर एक नया ख़्वाब आ गया, फिर एक नया ख़्वाब आ गया!
_✍️𝘿𝙧.𝙨𝙤𝙣𝙖𝙢 𝙥𝙪𝙣𝙙𝙞𝙧