बैठे बैठे अपने घर
बैठे बैठे अपने घर, मन को मैं बहलाता हूँ ।
नए नए शब्दो से, रोज कविता लिखता हूँ ।।
देश दुनिया की खबरों का, थोड़ा ज्ञान रखता हूँ ।
स्नेह प्रेम से सबको , मैं अपना बनाता हूँ ।।
धर्म संस्कृति ज्ञान का, सदा मनन करता हूँ ।
सबके हृदय में ईश्वर है, यह स्वीकारता हूँ ।।
धूल माटी के तन पर ,नही करता अभिमान हूँ ।
जो उम्र में हैं बड़े, उनका मैं सम्मान करता हूँ ।।
दिल किसी का टूटे , यह काम नही करता हूँ ।
सब सुखी रहे, यही मूल मंत्र जपता हूँ ।।
।।जेपीएल।।