बे-शुमार
तेरा दर्द दिल का करार हो
जुल्म हो तो फिर बे-शुमार हो
जब न वस्ल की हो उमीद भी
वक़्त भी यहाँ तार-तार हो
तेरा जिक्र जिसमे न हो ‘अभि’
वो ग़ज़ल हमें ना-गवार हो
कोई लहर भी जब न साथ है
कैसे लाश फिर बा-कनार हो
वार हो अगर तेरे हाथ से
घाव ऐसे हम पर हज़ार हों।
© अभिषेक पाण्डेय अभि