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28 Nov 2016 · 1 min read

बे-क़रारी शोर मचा सकती है

बे-क़रारी शोर मचा सकती है
आसमाँ सर पे उठा सकती है

रू-ब-रू हो मौत से इक बार तू
ज़िंदगी तेरी बना सकती है

चार बेटों से खिलाया न गया
माँ कइयों को खिला सकती है

मुहब्बत तूफान उठा करके भी
जान कितनों की बचा सकती है

बोल-बातों से क्या नहीं होता
बात दुनियाँ को हिला सकती है

कोय जीते जी मिटा न सका
मौत हर दर्द मिटा सकती है

रात को रोशन नहीं है सूरज
चाँदनी तन को जला सकती है

—–सुरेश सांगवान’सरु’

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