बे-क़रारी शोर मचा सकती है
बे-क़रारी शोर मचा सकती है
आसमाँ सर पे उठा सकती है
रू-ब-रू हो मौत से इक बार तू
ज़िंदगी तेरी बना सकती है
चार बेटों से खिलाया न गया
माँ कइयों को खिला सकती है
मुहब्बत तूफान उठा करके भी
जान कितनों की बचा सकती है
बोल-बातों से क्या नहीं होता
बात दुनियाँ को हिला सकती है
कोय जीते जी मिटा न सका
मौत हर दर्द मिटा सकती है
रात को रोशन नहीं है सूरज
चाँदनी तन को जला सकती है
—–सुरेश सांगवान’सरु’