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19 Mar 2020 · 1 min read

बेशरम हम न होते

सिलसिले गमों के कभी कम न होते
अगर तुम न होते अगर हम न होते

अगर आँसुओं की न बरसात होती
सुलगते हुए मन कभी नम न होते

सिमटते हुए ग़र न नजदीक आते
सहारे न मिलते व हमदम न होते

न होतीं अगर बाग में फूल-कलियाँ
महकते हुये आज मौसम न होते

समझते भला प्यार की अहमियत क्या
दिलों पर हमारे ग़रसितम न होते

बदलता जमाना कभी देखते तो
न मरती मुहब्ब़त सरकलम न होते

अगर लोग करते न रुसवाई ‘संजय’
शरम़ छोड़कर बेशरम हम न होते

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