— बेविश्वाश इंसान —
अब नजर नही आता कोई
जिस पर करें भरोसा
जिधर भी नजर जाती है
हर तरफ बस धोखा ही धोखा
चल कर साथ भी
साथ नही निभाता कोई
लेकर पैसा
वापिस नही लौटता कोई
क्या करे, क्या न करे
किस पर करे विश्वाश
बेवजह इंसान को लगने लगते
हैं अनचाहे आघात
सब कुछ बदल जाता है
जब शादी होने के बाद
असलियत में शुरुआत होती है
लेने देन की इस के ही बाद
भरोसा से ही चलती थी कभी दुनिया
अब उस की तलाश कहाँ करें ?
विश्वाश करे तो धोखा खाएं
न करे तो सोच सोच पछ्तायेन
अजीत कुमार तलवार
मेरठ