बेवफा
इश्क के दरिया मे/डुबोया हूँ खुद को खुद ही,
तन्हाई मे भी रो सकूँ/मिले ऐसे हालात नही!
थी वफा जब तक/खुद को जुगनू ही समझा किए
अना की जंग मे/मयस्सर अब रात नही!
खुदा बख्श उस/नासमझ की नादानी को,
जीने का सबब छीन लिया/और कहती ‘कोई बात नही’!
ज़फा की थी गर हमने तो सिर्फ बेवफा कह देते,
मर जाते खुद/आते तेरे सर /कत्ल-ए-इल्जामात नहीं।
तब इबादत थी मोहब्बत/अब कबूल तन्हाई भी है,
क्योंकि/कांटे किया करते फूलों से/कोई सवालात नहीं!