“बेवफा तेरी दिल्लगी की दवा नही मिलती”
धुप-छांव, दिन-रात, हवा नही मिलती
बेवफा तेरी दिल्लगी की, दवा नही मिलती।
कहां मिलता कोई मौसम, जो पुछु हाल- चाल
तेरे जाने के बाद क्यो, मौत की सजा नही मिलती ॥
मै अपनी सिकवा, करू तो करू किससे
कोई मिले तो मुझे, मै कहूं उससे
सुख – चैन खुशी – वफा नही मिलती
बेवफा तेरी दिल्लगी की, दवा नही मिलती॥
मै इतना तन्हा हु, कि रुठा मुझसे सबकुछ
तुम रुठी जबसे, रहा ना मेरे साथ अब कुछ
गुलाब – ख्वाब, जहर – जाम , जरा नही मिलती
बेवफा तेरी दिल्लगी की दवा नही मिलती॥
शराब पीने से, पता चला कि वो सुला देती है
एक मोहब्बत का गम ही है, जो रुला देती है
भुख-प्यास , निंद-चैन, दुआ नही मिलती
बेवफा तेरी दिल्लगी की दवा नही मिलती॥
✍️ बसंत भगवान राय