बेवफाओं के शहर में कुछ वफ़ा कर जाऊं
वेवफाओ के शहर में कुछ वफ़ा कर जाऊं।
जो दिल में है रंजीशे,उन्हे बाहर कर जाऊं।।
मिलता नही कोई ठिकाना,जहा आकर बताऊं।
अपने आप में ही घुलता हूं,किसे क्या सुनाऊं।।
काटी है जिंदगी गरीबी में अब कहां मैं जाऊं।
चोरी करनी बसकी नही,दौलत कहां से लाऊं।।
ज़ख्म बहुत है दिल में,किस किस को मैं दिखाऊं।
जख़्मों पर नमक छिड़क कर खुद को मैं सताऊं।।
कोई नही है अपना किस पर मैं विश्वास कर पाऊं।
विश्वासघाती मिलेगे बहत से उनकी क्या सुनाऊं।।
प्यार मै भी करता था,किसी से क्या मै छिपाऊं।
दिल में जो बसी थी मेरे,कैसे सबको मैं बताऊं।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम