बेवजह गीतिका छल रही है मुझे
आज फिर से हवा छल रही है मुझे,
महक उसकी अभी मिल रही है मुझे,
दूर मेरा पिया है न जाने कहां,
याद फिर क्यों यहां डस रही है मुझे,
हिचकियां दें गवाही मुझे आज भी,
रूह मेरी स्मरण कर रही है मुझे,
स्वाति अब तू बरस जा न कर बेरुखी,
मैं पपीहा तन्हा कर रही है मुझे,
आज निष्ठा सभी खत्म है शब्द की,
बेवजह गीतिका छल रही है मुझे।
पुष्प ठाकुर