बेवक्त
पहले दिन भर और फिर देर रात तक इंतज़ार रहता है कि व्यस्तता टूटे पर व्यस्तता का अंत नहीं होता।सारे काम समय पर होते हैं खाना सोना ऊठना बग़ैरह पर चूंकि उनको रोकना बस में नहीं।पूर्व में भी और अभी भी उतना ही व्यस्त या पहले से भी कहीं अधिक वही पुराना राग का आलाप।मात्र ऐसा कह देने से कुछ व्यस्तता कम हो ती है?कि मैं व्यस्त हूं !अभी नहीं!फिर कभी!
ज़िन्दगी के काम यौंही चलते हैं व्यस्तता के बावज़ूद भी पर फिर क्यों ये आलाप कि मैं۔?
वक्त किसी परीधि में सीमित नहीं रह सकता पर कुछ भी बेवक्त तो नहीं …
मनोज शर्मा