” बेर* “
त्रेता युग में शबरी ने चुन – चुन कर
एक – एक ” बेर* ” चख कर
प्रभु के चरणों में रख कर
प्यार से सराबोर हो निश्छल हो कर
बड़े दिल से प्रभु को खिलाया था ,
आज कलियुग में…….
जिसे देखो शबरी बनने का स्वांग रचता है
जनेऊ पहनता – उतारता है
वक्त अनुसार धर्म बदलता है
पर ” बेर* ” कोई नही चखता है ,
क्योंकि इस ” बेर ” में
चालाकी भरी है
मक्कारी भरी है
प्रभु के प्रती गद्दारी भरी है ,
ये मूर्ख हैं नादान हैं
प्रभु की महिमा से अनजान हैं
प्रभु के दर्शन करने से कुछ नही होता है
प्रभु तो बस मन की सुनता है ,
प्रभु को मन से याद करें
ना की ढ़ोंग में बर्बाद करें
जिस तरह शबरी ने खिलाये थे ” बेर* ”
उसी भक्ति में डूब कर
हम भी थोड़ा सा प्रयास करें ।
* निःस्वार्थ प्रेम
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 26 – 03 – 2019 )