बेरूख़ी के मार से गुलिस्ताँ बंजर होते गए,
बेरूख़ी के मार से गुलिस्ताँ बंजर होते गए,
होते_ होते ख़ाली मकान , खंडहर होते गए|
आती जाती लहरें , निशां छोड़ती जातीं हैं,
तहें जमते_ जमते सेवार¹, प्रस्तर होते गए|
अज़ीब हैं, ये जिंदगी के दस्तूर मेरे दोस्त,
उम्र बढ़ते गए, जिंदगी कम_तर होते गए|
दाने चुग चुगकर _आशियाना छोड़ते गए,
बच्चे…देखते ही देखते _कबूतर होते गए|
ख़्वाहिशों की फ़ेहरिस्त बढ़ते गए धीरे-धीरे,
इंसान, इंसान से फिर _अजगर होते गए|
_ सुलेखा
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