बेरुखी
मेरी कामयाबी में भले ही दिल जले उनका
मगर उनकी खुशी में मैं दिये हरदम जलाऊँगा
सगा माना बिठाया सर पे और दिल में जगह दे दी
मुझे क्या था पता उनको जहर देने की चाहत है
वो मेरी रोशनी से कब तलक नजरें छुपायेंगे
मुझे तो बनके सूरज उनकी राहों में चमकना है
उनकी बेरुखी भी अब मुझे अच्छी बहुत लगती
जो वीरानो में रहते हैं टटोलो दिल जरा उनका
अशोक मिश्र