बेरी के खट्टे मीठे बेर
**** बेर के खट्टे मीठे बेर ***
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दे कर बेरी , खट्टे मीठे बेर,
खाती रहती पत्थर,शाम सवेर।
काँटो तले सदा खिलतें हैं फूल,
युद्ध में सदैव लड़ते हैं दिलेर।
भलाई के बदले मिलती बुराई,
गलियों के अंत मे मिलते ढ़ेर।
खुद को चाहे मान लो सिकंदर,
सेर को मिल जाता है सवा सेर।
पल बीत जाते जल्दी हैं हसीन,
कष्ट कटें सदा अपनों के बगैर।
पैरों तले खिसक जाती ज़मीन,
मुसीबत जब आती है खड़े पैर।
मनसीरत ने देखा हजारों बार,
मौके पर साथ खड़े मिलते गैर।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)