बेरहम जिन्दगी
उड़ रहे हो आसमां
वक़्त है साथ तुम्हारे
जमीं पर ही पाओगे
होगा वक़्त साथ हमारे
नहीं है हमें शौक
उड़ने का
कतर दिये जाते हैं
पर परिन्दों के
ले चल मुकम्मल
जगह जिन्दगी
होता नहीँ सहन
दर्द भटकने का
चलते थे दौड़ कर
पीछे खींचते थे दोस्त
चढ़े जनाजे पर
श्मशान भगाने लगे दोस्त
हुई दोस्ती मौत से
जिन्दगी आसान हो गयी
बेवजह डरने की
वज़ह खत्म हो गयी
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल