बेमेल रिश्ता
अपनी इस कदर उपेक्षा देखकर शुभ को गहरा सदमा लगा। शुभ बड़ा था। बड़ा होने के नाते प्रथम हक उनका था। लेकिन गिने-चुने सांसारिक लोग ही शुभ को महत्व देते थे। बाकी उनकी परवाह न करते थे। इसप्रकार उपेक्षित होकर वह कोमा में जा पहुँचा था। उन्हें आईसीयू में वेंटिलेटर पर रखा गया था।
डॉक्टर ने जाँच-परख करके कह दिया था- ‘वैसे तो इन्हें कोई बीमारी नहीं है, बस प्रेम और अपनत्व की जरूरत है।’
उधर लाभ था तो छोटा, मगर हर कोई उन्हें महत्व देते थे। आम आदमी से लेकर व्यापारी, अधिकारी और राजनेता तक सबको वह प्रिय था। सब उसे प्राप्त करना चाहते थे।
सारी दुनिया कहती है- ‘शुभ और लाभ दोनों भाई-भाई हैं।’ मगर मुझे तो यह रिश्ता बेमेल लगता है।
(मेरे द्वारा रचित ‘मन की आँखें’ लघुकथा-संग्रह से..)
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत के 100 महान व्यक्तित्व में
शामिल रहे एक साधारण व्यक्ति।