बेमुरव्वत है दिल का कोना…
बेमुरव्वत है दिल का कोना…
बेमुरव्वत है दिल का कोना ,
इख़्तिलात फिर हो, क्यों करते।
आईना भी दरक गया है जो ,
फ़रामोशी को सहते-सहते ।
मुहब्बत का खुमार तो ,
उतरना ही था एक दिन ।
चलो ये अच्छा हुआ कि ,
इश्क नफ़रत से ही मारा गया ।
घटा ग़मगीन है अब सारा ,
नजरों का इशारा तो समझो ।
हुस्नवालों से दिल लगाना क्यों ,
जब उनकी नजरें ही बेमुरव्वत है ।
किस सोच में डुबे हो तुम ,
बेरुखी तो सबने जान लिया ।
पहरा लगा दिया है दिल पर अपना ,
अब दर्द को ही मोहब्बत मान लिया ।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १६ /१२ / २०२१
शुक्ल पक्ष , त्रयोदशी , गुरुवार
विक्रम संवत २०७८
मोबाइल न. – 8757227201