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10 Oct 2018 · 1 min read

बेताब ऑखो की ख्वाहिशें

बेताब ऑखो की ख्वाहिशें अब
मरने लगी है,

रूह का तिनका टूट-टूट कर
झरने लगी है।

दर्द-ए-दिल की दास्तान जो
दफ्न थी दिल मेें,

खुश्क हवाओं की चोट से फिर
सुबकने लगी है।

जिन खुशियों को हमने अपनी
खूं से खरीदा था,

बीते वक्त की रेत पर फिर से
बिखरने लगी है।

-के. के. राजीव

Language: Hindi
224 Views
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