“बेढंगी मसालें ज़्यादा हो गए हैं”
खो गया यकीं कहीं, अब ताले ज़्यादा हो गए हैं
दिखते हैं साफ़ मग़र,दिल काले ज़्यादा हो गए हैं
अपने से बनकर मिलते हैं वो पान जैसे मीठे मीठे
देते हैं दुहाई सच की,झूठें हवाले ज़्यादा हो गए हैं
ग़र दर से निकलो सफ़र में तो एहतियात बरतना
नज़र मुक़म्मल कर चलना, नाले ज़्यादा हो गए हैं
समझना मुश्किल है दस्तूर कि धुँधला है शहर अब
हटाये नहीं हटते दिलों पर, जाले ज़्यादा हो गए हैं
कुछ निकलते हैं ,माथों पर जुलुसी पट्टी बाँधरकर
कुचलते हैं इंसानियत वो,मतवाले ज़्यादा हो गए हैं
तबाही पर उतरते हैं वहशी मज़हबी इरादें लेकर
अब सड़कों को लाल करने वाले ज़्यादा हो गए हैं
भूल गए कुर्बानियां कितनों ने देशहित में जाँ दी थी
बिगाड़ने लगे भाजी,बेढंगी मसालें ज़्यादा हो गए हैं
___अजय “अग्यार