बेटी
” बेटी ”
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हरी घास पर
क्षण भर बैठी !
ये भारत की शान |
मन में एक उमंग है
होठों पर मुस्कान ||
यही आन है ….
यही शान है…..
यही तो है पहचान !
बेटी बनकर
खुशियाँ बाँटें !
निष्प्राणों में प्राण ||
माँ की है ये लाड़ली ,
और पापा की जान |
अन्नपूर्णा रूप में…..
यह गुणों की खान ||
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— डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”