बेटी
मैं संतुष्ट हूँ
माँ के चलने-उठन-बैठने
खाने-पीने, नहाने-धोने
यहाँ तक कि सोते समय भी
उसे ध्यान रहता है मेरे होने का.
मुझे पूरा विश्वास है
बाहर की दुनिया में भी वह
मेरा ध्यान रखेगी, मुझे दुलरायेगी,
प्यार देगी ध्यान रखेगी मेरा
वैसे ही, जैसे इन दिनों रख रही है
अब तो मैं भी समझने लगी हूँ
मुझे बाहर की दुनिया दिखाने को
लालायित हैं सभी.
माँ भी बहुत रोमांचित है
मुझे भी ललक है माँ को देखने की
माँ के आँचल में छिपने की
माँ की उँगली पकड़ कर दुनिया देखने की.
जाने क्यूँ लगता है
वह अभी अधूरी है
ऐसा क्यूँ कहा उसने?
रात को एकाएक
एक सिहरन
मेरे अपरिपक्व अंगों पर दौड़ गई
माँ रोमांचित हुई थी
खुशी, भय, चिन्ता या दर्द से !!
ओह !!!
पिता चाहते थे,
बेटा ही हो ताकि वंश चले, क्योंकि
वे अकेले हैं आगे
पीछे कोई नहीं
दादी चाहती है,
पोता ही हो ताकि वंश चले,
परपोते का वह स्वप्न, सजा सके
माँ ने कई बार
हाँ में हाँ मिलाई है
हँस कर कहा भी है
अभी 20-25 बरस
आपको कुछ नहीं होना
परपोते का मुँह देखेंगी आप
सोने की नसैनी चढ़ेंगी आप
उलाहना भी सुना है
पहले बेटा तो जन ले
फिर नसैनी की बात करना.
माँ उदास हो जाती है तब
यह मेरे हाथ में थोड़े ही है
कह कर काम में लग जाती है तब.
माँ ने पहली बेटी ही जनी थी
मेरी बड़ी बहिन
इतनी बड़ी हो गयी है कि
सबकी बातें बड़े रस ले कर सुनती है
उसकी भी इच्छा़ है भाई ही हो, पर
माँ सोच में डूब जाती हैं
पेट पर हाथ फिराती हैं
अहसास दिलाने के लिए
पेट में होती हलचल से रोमांचित हो
सपनों में खो जाती है
सो जाती है, किन्तु
मुझे नींद कहाँ !!!!
मैं भी माँ की तरह चिंतित हूँ
कैसे अहसास दिलाऊँ
कैसे चीखूँ चिल्लाऊँ
कैसे अपना अस्तिरत्व बताऊँ
मैं सबके दु:स्वंप्नों को
साकार करने जा रही हूँ
सबकी आशाओं पर
तुषारापात करने जा रही हूँ।
मैं गर्भ मे बेटी हूँ, बेटा नहीं…
माँ बेटा नहीं, बेटी जनेगी।
कितने उलाहने फिर दिये जायेंगे
कितने नश्तर चुभोए जायेंगे
खुशियाँ सबकी काफूर हो जायेंगी
सबके मुँह लटक जायेंगे।
पर तभी माँ ने निश्चय किया
एक रोमांच फिर मैंने अनुभव किया
बेटी हो या बेटा
वह उसे हर हाल में जनेगी
बेटी होगी तो भी दोनों को
बेटे की तरह परवरिश देगी।
दूसरे दिन यह परिवर्तन देख
मेरी बड़ी बहिन चकित रह गयी.
माँ को पल-पल में उस पर ध्यान देते देख
विस्फारित रह गयी
बेटे की तरह उसकी देखभाल शुरु हो गई.
सभी को इस सच को
स्वीकार कराने में
माँ सफल हो गई।
नारी पर हो रहे
उत्पीड़न और अत्याचारों का
यह फल तो नहीं
बेटी को
अच्छी परवरिश नहीं देना
यह गुनाह किसी का नहीं
प्रकृति की अनुपम भेंट है बेटी
इसे अस्वीकार करना अन्याय है
नारी ने इतिहास बनाये हैं
हर युग इसका गवाह है और—–
इक दिन मेरा जन्म हो गया
कुछ तो इसका प्रभाव पड़ना ही था
दादी ने पूरे स्नेह से
मुझे गले लगाया
उबटना कराया
दृष्टिक न लगे
कपाल पर डिठौना लगाया
माँ ने हर रात मुझे लौरी सुनाई
बहिन ने बाहों में झूला झुलाया
पिता गोद में लेकर बाजार जाते
सबने उँगली थाम
चलना सिखाया
बड़ी हो कर मुझको भी
ऐसा ही कुछ करना है जैसा
इतिहास में नारी ने गौरव बढ़ाया
ऐसा ही आगे बढ़ना है
हर घर में होनी चाहिए
बेटी की पूरी देखभाल
तभी देश खुशहाल होगा
बेटी बनेगी नौनिहाल।
माँ के अधूरेपन को पूर्ण करना है
कुछ बन कर
माँ को सम्पूर्ण करना है.