बेटी
एक एक पल जो गुजरा
वो भारी था दामन में,
मेरा होकर भी पृथक
हो रहा था मेरे अस्तित्व से,
और मेरे अहसास उसके टूटन
के साथ जङ हो बिखर रहा था ,
तड़प रहा था,
रिश्ता होकर भी रिश्ता न हो पाया,
बस अहसास बनकर
मेरी रूह मे समा गयी,
जिसकी प्यारी सी धड़कन
को अनचाही काँटों सा
लहुलुहान कर दिया गया,
ये जानकर की वो एक लड़की है!
कैसा स्वार्थ था ये,
कौन सी बेबसी थी,
पर आज भी मेरे कानों
गूँजती रहती ,
उसकी अनसुनी सी धड़कन,
बार बार मुझे छूकर कहती,
माँ!
मुझे भी आने दो,
अपनी गोद में,
मुझे भी तुम्हारा प्यार
पाने का हक हैं।
मुझे भी माँ कहने का हक है।
इतनी बेरहमी से खुद से
जुदा न करो,
सिर्फ इसलिए कि मैं
एक लड़की हूँ!
क्या मेरे दिल की पुकार
तुम्हारे दिल से अलग है?
पनाह दो मुझे भी माँ।
जन्म लेने अधिकार मुझे भी है
वो अधिकार मत छीनो मुझसे माँ।
पूनम समर्थ ( आगाज ऐ दिल)