बेटी पढ़ेगी, चाँद छुएगी,,,,
बेटी पढ़ेगी, चाँद छुएगी,,,,
माँ !
भय, आशंका के बीच,
अपनी बिटिया की
स्कूल से लौटने की
राह तकती है,,
वह रोज अखवार देखती है,
ख़बरें पढ़ने से डरती है,
डर डर के फिर भी पढ़ती है,
और पढ़ने के बाद,
कुछ ज्यादा डरती है,,
उसे मालूम है,
स्कूल के पास
मोड़ पर बनी पुलिया पर,
नर गिध्ह्ओं की जमात,
आँख गढ़ाये बैठी रहती है,
उसे यह भी मालूम है कि,
गली की नुक्कड़ पर,
पान के टपरे पर,
भेड़ियों की फौज,
दिन रात खड़ी रहती है,,
यह सब जान कर भी,
वह अपनी बिटिया को
स्कूल भेजती है,
क्योंकि उसे मालूम है,
संघर्षो के बीच से ही,
जीवन की राह बनेगी,
आग से तपकर ही,
कुंदन की चमक निखरेगी,,
बेटी पढ़ेगी, तो ही,
कल चाँद छुएगी,,
इंजी. हेमंत कुमार जैन ।
जबलपुर ।