बेटी पिता का अंतरतम प्रेम..
एक आकर्षण छुपा हुआ है
तेरे सुंदर मुखड़े में,
ये मेरे अंश का प्रतिफल है,
या आता तेरे प्रारब्ध के कल में ।
जब भी तेरा मुखड़ा दिखता
आनंद उभर आ जाता है
तेरे होंठों पर मुस्कान लिए
मेरा संतोष मुझे दिख जाता है ।
पता नही क्यो जिम्मेदार हुआ हूँ
तेरा मेरे जीवन में आ जाने से
पुरुष से अब मैं पिता हुआ हूँ
बेटी को अपनी गोदी में पाने से ।
है जन्मों का एक पथ हमारा
जिसपर तुझे आगे लेकर बढ़ना है
मैं तेरे पथ का रथवाह हुआ हूँ
मेरा जन्म सफल तुझे कर देना है ।
मेरी पातकता को हरने
रत्नगर्भा शरीर लिए जन्मी है
मुझे ऋणों से मुक्त कराने
मेरा सौभाग्य लिए मेरी बेटी जन्मी है ।
मुझे चाहिए ना आगे कुछ,
तेरी खुशियों का आधार बनूँ
संघर्षमयी तेरे जीवन पथ पर
स्पंज की तरह मैं काम करूँ..।
चलता है जीवन ऊपर-नीचे
तुझे भी इसी राह पर चलना है,
आखों में हरदिन उत्साह लिए
कर्मपथ पर तुझे विजश्री होना..।
मेरे जीवन का उद्धार हुआ है,
कन्यादान के सौभाग्य से,
ब्रह्मांड मेरा खुशहाल हुआ है
तेरे होंठो पर मुस्कान से..।
हुआ पुत्र जब खुशी से ज्यादा
अहम भरा था मेरे सीने में
आँखें खोली बेटी तूने जब
हृदय झलक आया मेरी पलकों में ।
तेरे जन्म पर ही मैं जाना
अहम से बढ़कर होता है प्रेम
बेटा अगर गुरुर हुआ है तो
बेटी होती पिता के अंतरतम का स्नेह ।
प्रशांत सोलंकी
नई दिल्ली-07