बेटी की विदाई
• बेटी की विदाई
बेटी जब-जब सपना देखे
बाबुल का घर अपना देखे
घर में जब भी अंधियारा था
बेटी ने किया उजियारा था
उस घर को ही छोड़ चली
चुनर अश्कों की ओढ़ चली।
चिड़ी चहकना भूल गई
पौधे सब मुरझाए है
तितली के रंग फीके पड़ गए
आंगन के फूल कुम्हलाए है
अपने ही घर से मुख मोड़ चली
चुनर अश्कों की ओढ़ चली।
चूल्हे की आग भी ठंडी पड़ी
रसोई की रौनक चली गई
पायल की छनछन कहाँ गई
चूड़ी की खनक चली गई
गीतों की सरगम तोड़ चली
चुनर अश्कों की ओढ़ चली।
बापू की थाली कौन लगाए
कौन माँ से रूठेगा
छोटी बहना को कौन मनाए
भया किस से झगड़ेगा
पिया से रिश्ता जोड़ चली
चुनर अश्कों की ओढ़ चली।
अब ससुराल ही रहना होगा
उसे अपना घर कहना होगा
पीहर पराया न हो पाएगा
प्यारी यादें न खो पाएगा
बाबुल का आँगन छोड़ चली
चुनर अश्कों की ओढ़ चली।