बेटी का बाप हूँ न
बेटी का बाप हूँ न
क्या कहूँ तुझको बेटी
क्या उपमा दूँ मैं बेटी
तुझे बेटी कहूँ
दुलारी कहूँ..
लाड़ली कहूँ
जो कहूँ, शब्द निःशब्द हैं
तू प्यार की वो बगिया है
जिससे बाबुल का घर
महकता है…
हो न तू तो यह घर अखरता है।
माना मैं पिता हूँ और तू बेटी
माँ से नजदीकी, पिता से दूरी
एक बात कहूँ बेटी
कभी दिल से सोचना
पिता को महसूस करना
सोचना, पिता क्या चाहता है
सोचना, पिता क्या मानता है
जब तू ससुराल से आती है
या कॉलेज से आती है न..
मैं तुझको अपलक देखता हूँ
सोचता हूँ, तू न होती तो क्या होता…
मैं एक पिता के अहसास से दूर होता….
जब तू हुई थी न….सपना साकार
हुआ था…
तू बड़ी हुई तो खौफ पसरा था…
आज खबरों ,जमाने से डरता हूँ..चाहता हूँ
तू निडर बने लेकिन
आंखे मेरी…सोती नहीं…
कभी तेरी ससुराल पर तो कभी
तेरे कॉलेज पर लगी रहती है..
लगे भी क्यों न बेटी…!!
मैं बाप हूँ…
आंखों से कहता हूं
दिल की सुनता हूँ..
बेटी का बाप हूँ न,!
सूर्यकान्त