बेटी एक स्वर्ग परी सी
बेटी एक स्वर्ग परी सी
अनमोल तोहफ़ा कुदरत का
जब पग धरा पर ये रखती
निहारती रहती चेहरा माता
अपनी सी प्रति बिम्ब देख
रौनकता से हर्षित होती
मां बनने का गौरव पाती
लक्ष्मी की एक रूप कन्या
बेटी है वरदान जनों का
अमूल्य धरोहर रत्न धरणी का
झिलमिल रोशनी में आती
पर जग रोशन कर देती बेटी
स्वर्ग परी सी सुंदर बेटी
माता की दामन चुनरी में
पली लिखी पढ़ी बढ़ी बेटी
जग की शोभा बढ़ाती बेटी
मां सास बहु बनकर बेटी
पूजी जाती जग में बेटी
सौम्य सुन्दरता से इनकी
आंगन में खुशी पल आती
पग घुंघरू छन छना छन छन
छन मधुर संगीत की नाद बिखेर
तुतली मनभावन संवादों की
छोटी मधुर स्वर की पुड़िया बेटी
गुडिया नाम लेती बिटिया का
मोह माया की जाल बिछाती
वर्चस्व स्थापित कर भावों से
सरस दिल परिवार बनाती बेटी
ममता प्रेम अमृत बरसाती बेटी
चहल कदमी किलकारी से
परिजनों का मन मोहती बेटी
रूप यौवन अगाध सुन्दरता
सुहाग सिंदुर श्रृंगारी बिंदिया
सुहागिन हो नारी सी बिटिया
सृष्टि सतत् प्रकृति प्रकिया में
अपनी भागीदारी देती बेटी
कोमल नाजुक पग की बेटी
विरांगनाओं की वीर पग से
कर्मवीरों का पग बनती बेटी
सारी भ्रांति नाजुक नारी का
क्षण में दूर कर देती बेटी
भार नहीं वर्फ फुहार है बेटी
सहज सब्रता सहनशीलता
वर्फ अटल चट्टान है बेटी
मां पिता के नयनों का तारा
मानस के दिलों का प्यारा
समाज की गौरव है बेटी
जन जन की जुवान है बेटी
देश का अभिमान है बेटी
मातृभूमि की वरदान है बेटी
सरगम की पहचान है बेटी
धरती का श्रृंगार है बेटी
जगत तुझे सहृदय से
धन्यवाद देती है बेटी ॥
तारकेश्वर प्रसाद तरूण
पुस्तकालयाध्यक्ष