“बेटियों तुम कोमल हो कमजोर नहीं “
बेटियाँ बहुत प्यारी होती हैं ।
घर आँगन की राजकुमारियाँ होती है
बेटीयाँ घरों की रौनक होती हैं ।
फूलों की तरह खिलती घर आँगन
महकाती है।
तितलियों सी रँग बिरँगी खुशियाँ लुटाती।
फिर तितलियों की तरह सुनहरे पंख लिये
मायके से विदा हो ,ससुराल मे अपना
आशियाना बनाती ।
कितनी सहनशील होती हैं ,बेटियाँ पल
में मायका का दुलार छोड़ ,पीहर पर दुलार
लुटाती ।
माँ बस बेटी से यही कहती ,नहीं बस मुझे
तुझे जन्मने में कोई नहीं तकलीफ ,तुम तो
मेरे घर की रौनक ,मेरी लक्ष्मी ,मेरी हमसाया हो।
पर डरती हूँ मैं बेटी , जमाने की बेरहम निगाहों
से मैं तुम्हे कैसे बचाऊँगी ।
बेटी मैं तुम्हे बताती हूँ , तुम ही हो दुर्गा ,सरस्वती
और तुम ही हो काली, जब -जब तुम पर संकट आये
तुम शक्ति बन जाना । अपनी शक्ति से पापों से धरती को
मुक्त करना स्वयम् अपनी ढाल हो तुम।
बेटी कोमल हो तुम ,कमजोर नही ।
कोमलता तुम्हारा श्रृंगार है ,कमजोरी नहीं दूनियाँ को यह सन्देश तुम देना।