बेटियां
माखन सी नर्म और स्निग्ध
होती हैं बेटियां।
पाकर ज़रा सी उष्णता
पिघलती हैं बेटियां।
ज्यूँ पंखुड़ी गुलाब की
ऐसा है इनका स्पर्श
हल्की सी चोट मन पे लगे
कुम्हलाती हैं बेटियां।
रक्षासूत्र बन कलाई पर
सजे भाई की,
माता पिता की सुख दुःख की
छाया हैं बेटियां।
बन इंदिरा और किरन बेदी
इतिहास रच देती हैं
सुनीता बन कभी कल्पना
नभ छू लेती हैं बेटियां।
जो बोझ सबका ढोये
बोझ माने है क्यों जग उसे!
मायके और ससुराल का
गौरव हैं बेटियां।
भाग्यशाली मानो, गर
माँ बाप हो बेटी के
जन्मों के संचित पुण्यों से
मिलती हैं बेटियां।
***धीरजा शर्मा***