बेटियां
गहरे दरिया से लेकर वो
ऊंचे अम्बर चूम रहीं
हो सहरा की गर्म रेत या
जंगल पर्वत घूम रहीं
उनने अपनी हिम्मत से ही
लांघी कठिन दिवारे हैं
सदी पे उनका नाम लिखा है
मुट्ठी मे सब तारे हैं
बोझ नही वो आज किसी पर
सारे धर्म निभाती हैं
आज बेटियां गर्व बाप का
बूढ़ापे की लाठी हैं
योगेश ध्यानी