Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Jan 2017 · 2 min read

बेटियाँ

कभी मंदिर में उसको पूजा था,घर आई तो ठुकराया हैं।
क्यों समाज के डर से उसको बलिवेदी पे चढ़ाया है।

वरदान ईश का अंश तेरी ऋंगार है तेरे मधुवन की।
तुलसी है वो तेरे आँगन की है बेटी वो तेरे घर की।
उसके कदमो की आहत से मन गुंजित हो कर झूमेगा।
जिसे बोझ अभी समझ रहे जग उसके पद को चूमेगा।
लाड पिता का माँ की ममता क्या सब कुछ बिसराया है।
क्यों समाज के डर से उसको बलिवेदी पे चढ़ाया हैं।।

जन्म उसे भी लेने दो घर बेटी रौनक लाएगी।
नन्हे नन्हे कदमो के पदचिन्ह छोड़ती जायेगी।
तुम्हे उदासी घेरे जब निज किलकारी से हँसायेगी।
तेरे मन के सुने कानन में अपनी सुगंध फैलाएगी।
तुम भी नेह लुटाना उसपर क्यों चितवन मुरझाया हैं।
क्यों समाज के डर से उसको बलिवेदी पे चढ़ाया हैं।

नही बोझ तेरे कंधो पर इक दिन सहारा बन जायेगी।
जब कदम तुम्हारा साथ तजे वो हाथ थाम दिखलाएगी।
अभिशाप नही वरदान बेटी दो कुल को पार लगाती है।
पग दंश पड़े माँ बाप के तो निज पलको को भी बिछाती है।
माली तेरे उद्यान पुष्प पर भय कैसा मंडराया हैं।
क्यों समाज के डर से उसको बलिवेदी पे चढ़ाया हैं।

करती है अरदास बेटी कर जोड़ कोख मुझे मत मारो।
मात पिता हो मेरे मुझको लेकर अंक में दुलारों।
मेरा अस्तित्व मिटा कर फिर तुम भी तो खो जाओगे।
जो कन्या हीन हुई धरती तो पुत्र कहाँ से पाओगे।
बेटी ही आधार विश्व का सबने यही बताया है।
क्यों समाज के डर से उसको बलिवेदी पे चढ़ाया हैं।।

शाम्भवी मिश्रा

1 Like · 998 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
कभी जिस पर मेरी सारी पतंगें ही लटकती थी
कभी जिस पर मेरी सारी पतंगें ही लटकती थी
Johnny Ahmed 'क़ैस'
दोहे-
दोहे-
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
बहुत दिनों से सोचा था, जाएंगे पुस्तक मेले में।
बहुत दिनों से सोचा था, जाएंगे पुस्तक मेले में।
सत्य कुमार प्रेमी
शुरुवात जरूरी है...!!
शुरुवात जरूरी है...!!
Shyam Pandey
खुदा के वास्ते
खुदा के वास्ते
shabina. Naaz
कविता तो कैमरे से भी की जाती है, पर विरले छायाकार ही यह हुनर
कविता तो कैमरे से भी की जाती है, पर विरले छायाकार ही यह हुनर
ख़ान इशरत परवेज़
👉 सृष्टि में आकाश और अभिव्यक्ति में काश का विस्तार अनंत है।
👉 सृष्टि में आकाश और अभिव्यक्ति में काश का विस्तार अनंत है।
*Author प्रणय प्रभात*
घूँघट के पार
घूँघट के पार
लक्ष्मी सिंह
आज कल कुछ लोग काम निकलते ही
आज कल कुछ लोग काम निकलते ही
शेखर सिंह
आज वही दिन आया है
आज वही दिन आया है
डिजेन्द्र कुर्रे
💐प्रेम कौतुक-305💐
💐प्रेम कौतुक-305💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
*होइही सोइ जो राम रची राखा*
*होइही सोइ जो राम रची राखा*
Shashi kala vyas
-अपनो के घाव -
-अपनो के घाव -
bharat gehlot
अपना अनुपम देश है, भारतवर्ष महान ( कुंडलिया )*
अपना अनुपम देश है, भारतवर्ष महान ( कुंडलिया )*
Ravi Prakash
मां का घर
मां का घर
नूरफातिमा खातून नूरी
वक़्त की मुट्ठी से
वक़्त की मुट्ठी से
Dr fauzia Naseem shad
आप इसे पढ़ें या न पढ़ें हम तो बस लिखते रहेंगे ! आप सुने ना सुन
आप इसे पढ़ें या न पढ़ें हम तो बस लिखते रहेंगे ! आप सुने ना सुन
DrLakshman Jha Parimal
पवित्र होली का पर्व अपने अद्भुत रंगों से
पवित्र होली का पर्व अपने अद्भुत रंगों से
डा. सूर्यनारायण पाण्डेय
आज के बच्चों की बदलती दुनिया
आज के बच्चों की बदलती दुनिया
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
तोता और इंसान
तोता और इंसान
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
बिडम्बना
बिडम्बना
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
सच का सच
सच का सच
डॉ० रोहित कौशिक
किताबों में तुम्हारे नाम का मैं ढूँढता हूँ माने
किताबों में तुम्हारे नाम का मैं ढूँढता हूँ माने
आनंद प्रवीण
कुछ दर्द झलकते आँखों में,
कुछ दर्द झलकते आँखों में,
Neelam Sharma
बुद्धिमान बनो
बुद्धिमान बनो
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
अब जी हुजूरी हम करते नहीं
अब जी हुजूरी हम करते नहीं
gurudeenverma198
अर्धांगिनी
अर्धांगिनी
VINOD CHAUHAN
तुम याद आ गये
तुम याद आ गये
Surinder blackpen
"आदत"
Dr. Kishan tandon kranti
कहने को हर हाथ में,
कहने को हर हाथ में,
sushil sarna
Loading...