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22 Jan 2017 · 1 min read

बेटियाँ

प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
बेटियाँ
———–
बेटियाँ बाती
स्वयं को वे जलातीं
उजास लातीं
महकातीं आँगन
घर खुशियाँ लातीं
नन्हीं कलियाँ
चहकतीं पंछियाँ
हँसतीं गातीं
फूल बनीं बेटियाँ
घर महका उठीं
बेटी जानतीं
अवसादों को ठेल
खुशियाँ लातीं
रुलाई को बाहर
कभी आने न देतीं
माता की छाया
पिता का अभिमान
बेटी महान
आँगन महकातीं
दो कुलों की वो शान ।
—00—
– प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
मो.नं. 7828104111

741 Views
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