*बेटियाँ*
आसमां छू रही आज हैं बेटियाँ !
इक महकता हुआ राज़ है बेटियाँ !!
देश के मान को जग में ऊँचा किया !
कम किसी से कहाँ आज हैं बेटियाँ !!
एक कुल का बने मान बेटा मगर!
दो कुलों की रखें लाज हैं बेटियाँ!!
गीत बनकर सभी के दिलों में बसे !
वो सुहाना हसीं साज़ हैं बेटियाँ!!
उस खुदा ने अता की हमें नेमतें!
ये “मुसाफ़िर” कहे ताज है बेटियाँ!!
धर्मेन्द्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”