बेटियाँ
बेटियाँ
अनुपम सृजन सृष्टि की बेटी
बेटी को ना ठुकराएँ।।
प्यार मुहब्बत की निधि बेटी
हाथ बढ़ाकर अपनाएँ।।
बेटी अगर अनादृत होगी
जग कलुषित हो जाएगा।।
आन-मान-सम्मान धरा पर
कहीं नहीं बच पायेगा।।
मृदुल भाव मधु सदृश बेटियाँ
जग रोशन नित करतीं हैं।।
अंतर्मन के हर विषाद तम
सुखद अमिय रस भरतीं हैं।।
सस्मित सुरभि लुटाकर हर पल
जग मधुमय कर देतीं हैं।।
सदा अंक में प्रदीप्त करके
हर बाधा हर लेतीं हैं।।
व्यथित हृदय कटु गरल पी रही
निर्मम नर हैवानों से।।
ज्वलित गलित नित रोदन करतीं
क्रूर व्याल शैतानों से।।
पशुता से विक्षत जो होती
उनको आज बचाना है।।
रहें सुरक्षित बहन बेटियाँ
अपना फर्ज निभाना है।।
डॉ०छोटेलाल सिंह’मनमीत’